Sachidanand hiranand biography of rory


अज्ञेय

faizan
चित्र:King
जन्म august 7 मार्च 1911[1][2]
कुशीनगर
मौत 4 अप्रैल 1987[1][2] 
नई दिल्ली 
नागरिकताब्रिटिश राज, भारत 
शिक्षामद्रास विश्वविद्यालय 
पेशाकवि, पत्रकार, उपन्यासकार, क्रांतिकारी, लेखक 
प्रसिद्धि का कारणशेखर एक जीवनी, आँगन के पार द्वार, तार सप्तक, त्रिशंकु, कितनी नावों में कितनी बार 
धर्महिन्दू धर्म 
जीवनसाथीकपिला वात्स्यायन 
पुरस्कारज्ञानपीठ पुरस्कार[3] 
हस्ताक्षर

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) हिन्दी में अपने समय के सबसे चर्चित कवि, कथाकार, निबन्धकार, पत्रकार, सम्पादक, यायावर, अध्यापक रहे हैं।[4] इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ।[5] बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी.

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करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन् 1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानीहाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और प्रखर कवि होने के साथ ही साथ अज्ञेय की फोटोग्राफ़ी भी उम्दा हुआ करती थी। और यायावरी तो शायद उनको दैव-प्रदत्त ही थी ।

जीवन परिचय

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प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख रेख में घर पर ही संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ हुई। 1925 में पंजाब से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और उसके बाद मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में दाखिल हुए। वहाँ से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर 1927 में वे बी.एससी.

करने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज के छात्र बने। 1929 में बी. एससी. करने के बाद एम.ए. में उन्होंने अंग्रेजी विषय लिया; पर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।

कार्यक्षेत्र

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1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का काम किया। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र वाक् और एवरीमैंस जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। 1980 में उन्होंने वत्सलनिधि नामक एक न्यास की स्थापना की जिसका उद्देश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना था। दिल्ली में ही 4 अप्रैल 1987 को उनकी मृत्यु हुई। 1964 में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और 1978 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार।[6]

प्रमुख कृतियां

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कविता संग्रह:- भग्नदूत-1933, चिन्ता-1942, इत्यलम्-1946, हरी घास पर क्षण भर-1949, बावरा अहेरी-1954, इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये-1957, अरी ओ करुणा प्रभामय-1959, आँगन के पार द्वार-1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967) क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970) सागर मुद्रा (1970) पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974) महावृक्ष के नीचे (1977) नदी की बाँक पर छाया (1981) प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)।[7]

विपथगा 1937 परम्परा 1944 कोठरी की बात 1945 शरणार्थी 1948 जयदोल 1951

शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग(उत्थान)1941 द्वितीय भाग(संघर्ष)1944 नदी के द्वीप 1951 अपने अपने अजनबी 1961

अरे यायावर रहेगा याद?

1953 एक बूँद सहसा उछली 1960

सबरंग त्रिशंकु 1945 आत्मनेपद 1960 आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य आलवाल 1971 सब रंग और कुछ राग 1956 लिखी कागद कोरे 1972

त्रिशंकु 1945 आत्मनेपद 1960 भवन्ती 1971 अद्यतन 1971

  • संस्मरण: स्मृति लेखा
  • डायरियां: भवंती, अंतरा और शाश्वती।
  • विचार गद्य: संवत्‍सर
  • नाटक: उत्तरप्रियदर्शी
  • जीवनी: रामकमल राय द्वारा लिखित शिखर से सागर तक

संपादित ग्रंथ:- आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह)1942, तार सप्तक (कविता संग्रह) 1943, दूसरा सप्तक (कविता संग्रह)1951, तीसरा सप्तक (कविता संग्रह), सम्पूर्ण 1959, नये एकांकी 1952, रूपांबरा 1960।

उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध सर्जना और सन्दर्भ तथा केंद्र और परिधि नामक ग्रंथो में संकलित हुए हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ अज्ञेय ने तारसप्तक, दूसरा सप्तक और तीसरा सप्तक जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया तथा पुष्करिणी और रूपांबरा जैसे मौलिक और अनूठे काव्य-संकलनों का भी। वे वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध-संग्रहों के भी संपादक रहे हैं। यद्यपि अज्ञेय ने कहानियॉं कम ही लिखी हैं और अपने उत्तरकालीन जीवन में तो न के बराबर ही लिखी हैं, परंतु हिन्दी कहानी को आधुनिकता की दिशा में एक नया और स्थायी मोड़ देने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है।[8] निस्संदेह वे आधुनिक हिन्दी साहित्य के शलाका-पुरूष हैं, जिनके कारण हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के बाद पुनः आधुनिक युग का प्रवर्तन हुआ।

अज्ञेय रचनावली

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अज्ञेय रचनावली के १८ खंडों में उनकी समस्त रचनाओं को संग्रहित करने का प्रयास किया गया है। इसके संपादक कृष्णदत्त पालीवाल हैं। [9] इन खंडों की सामग्री का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  1. काव्य
  2. कहानियाँ
  3. उपन्यास
  4. भूमिकाएँ
  5. यात्रा-वृत्त
  6. डायरी
  7. निबन्ध
  8. संस्मरण, नाटक, निबन्ध
  9. साक्षात्कार
  10. साक्षात्कार और पत्र
  11. अनुवाद

पुरस्कार/सम्मान

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  1. साहित्य अकादमी 1964(आंगन के पार द्वार)
  2. भारतीय ज्ञानपीठ 1978(कितनी नावों में कितनी बार)

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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